सोमवार, ७ जुलै, २०१४

बुद्ध वंदना (हिंदी)




अर्हंत सम्यक संबुद्ध भगवान बुद्ध को मैं अभिवादन करता हूँ ॥

उन बुद्ध भगवान द्वारा उपदेश किए हुये धर्म को मैं नमस्कार करता हूँ ॥

सन्मार्ग पे आरुढ ऐसे भगवान बुद्ध श्रावक संघ को मैं नमस्कार करता हूँ ॥






उन भगवान अर्हंत सम्यक संबुद्ध को मेरा नमस्कार हैं ॥
उन भगवान अर्हंत सम्यक संबुद्ध को मेरा नमस्कार हैं ॥
उन भगवान अर्हंत सम्यक संबुद्ध को मेरा नमस्कार हैं ॥




त्रिशरण


मैं बुद्ध को शरण जाता हूँ ।
मै धर्म को शरण जाता हूँ ।
मैं संघ को शरण जाता हूँ ।

दुसरी बार मैं बुद्ध को शरण जाता हूँ ।
दुसरी बार मै धर्म को शरण जाता हूँ ।
दुसरी बार मैं संघ को शरण जाता हूँ ।

तिसरी बार मैं बुद्ध को शरण जाता हूँ ।
तिसरी बार मै धर्म को शरण जाता हूँ ।
तिसरी बार मैं संघ को शरण जाता हूँ ।





पंचशील


मैं प्राणीहिंसा से दुर रहने कि शिक्षा ग्रहण करता हूँ ॥
मैं चोरी करने से दुर रहने कि शिक्षा ग्रहण करता हूँ ॥
मैं काम वासना के दुराचार से दुर रहने कि शिक्षा ग्रहण करता हूँ ॥
मैं झुट बोलने से दुर रहने कि शिक्षा ग्रहण करता हूँ ॥
मैं मद्य तथा मादक पदार्थ के सेवन करने से दुर रहने कि शिक्षा ग्रहण करता हूँ ॥


बुद्ध पुजा


वर्ण और गंध जैसे गुणों से युक्त पुष्पमाला से मैं मुनींद्र के श्रीपाद कमलों कि पुजा करता हूँ ॥

इन कुसुमों से (फुलों से) मैं बुद्ध कि पुजा करता हुं । इस पुण्य से मुझे निर्वाण कि प्राप्ती होगी, जैसे यह फुल सुक जाता हैं वैसे हीं मेरा शरीर नश्वर हैं ॥

अंधकार का नाश करने वाले, सर्वव्यापक प्रकाश मान ऐसे (सुरज जैसे) इस विश्व का अज्ञानरुपी अंधकार का नाश करने वाले त्रिलोकदीप सम्यक संबुद्ध कि मैं पुजा करता हूँ ॥

सुगंध युक्त शरीर वाले तथा अनंत गुण धारी सुगंध से परीपुर्ण ऐसे तथागत कि मैं सुगंध से पुजा करता हूँ ॥

बुद्ध, धर्म, संघ, लंका, जंबुदीप तथा नागलोक और त्रिदशपुर के स्तुपों मे स्थापित बुद्ध शरीर के अवशेष, केश, लोम और धातुओं के जितने रुप हैं वे सभीं बुद्ध के ही रुप हैं, उन सभीं को, सर्व बुद्ध, दशबलतनुज और बोधीचैत्य उन सभीं को मैं नमन करता हूँ ॥

सभी जगहों पर स्थापित बुद्ध शरीर के अवशेषों को महाबोधीवृक्ष तथा चैत्य को मैं वंदन करता हूँ, क्युं कि यह सदैव बुद्ध के ही रुप हैं ॥



वंदना पाठ



बुद्ध वंदना

अर्हंत (जीवनमुक्त), सम्यक संबुद्ध (संपुर्ण जागृत) विद्या और आचरण से युक्त सुगती जिन्होंने प्राप्त की हैं ऐसे लोकविधु, सर्वश्रेष्ठ तथा दमनशील पुरुषों के सारथी तथा आधार देणे वाले देव और मनुष्यों के शास्ता ऐसे यह भगवान बुद्ध हैं ॥

ऐसे बुद्ध भगवान का जीवनभर अनुसरण करणे का मैं निर्धार करता हूँ ॥

भुतकाल में जो बुद्ध हो गएं हैं, भविष्य में जो बुद्ध होंगे तथा (अनंत लोगों के दुःख के नाशक) वर्तमान में जो बुद्ध हैं, उन सभी को मैं वंदन करता हूँ ॥

मुझे और किसी का आधार नहीं, केवल बुद्ध ही मेरा सर्वश्रेष्ठ आधार हैं, इस सत्य वचन से मेरा मंगल हो ॥

बुद्ध भगवान के पवित्र चरणों के धुल को मैं वंदन करता हुं । बुद्ध के संबंध में मेरी और से कोई अपराध हो गया हो तो वे भगवान बुद्ध मुझे क्षमा करे ॥

इस लोक मे जो अनेक प्रकार के अनमोल रत्न हैं उन मे से किसी से बुद्ध की बराबरी नहीं हो सकती , इस सत्य वचन से मंगल हो ॥

जिन्होंने पुज्य बोधीवृक्ष के नीचे बैठकर, मार सेना का पराभव किया, अनंत ज्ञान कि प्राप्ती कर जिन्होंने बुद्धत्व की प्राप्ती की, जो सारे विश्व में श्रेष्ठ हैं ऐसे भगवान बुद्ध मैं नमस्कार करता हूँ ॥



धम्म वंदना

भगवान (बुद्ध) ने जिस सुंदर धर्म का उपदेश किया सच्चाई यहीं आखों के द्वारा देख सकते हैं, जो धर्म अपना फल जल्द ही देता हैं, कोई भी जिसका अनुभव करें, यह सिद्धांत विज्ञान के द्वारा खुद अनुभव करके देख सकतें हैं ॥

ऐसे धर्म का मैं जीवनभर अनुसरण करने का निर्धार करता हूँ ॥

जो भुतकाल के बुद्धों के द्वारा उपदेश किया हुआ धर्म हैं, जो भविष्यकाल के बुद्धों के द्वारा उपदेश किया हुआ धर्म होगा तथा (अनंत लोगों के दुःख के नाशक) वर्तमान के बुद्ध के द्वारा उपदेश किया हुआ जो धर्म हैं, उन सभी धर्मों को मैं वंदन करता हूँ ॥

मुझें किसी और का आधार नहीं, केवल बुद्ध का धर्म हिं मेरा एकमेव आधार हैं, इस सत्य वचन से मेरा मंगल हो ॥

सभी प्रकार से श्रेष्ठ ऐसे बुद्ध के धर्म को मैं वंदन करता हूँ , यदी धर्म के संबंध मेरे से कोई अपराध हुआ हो तो वह धर्म मुझे क्षमा करें ॥

इस लोक मे जितने अनेक प्रकार के अनमोल रत्न हैं उन में से किसी से भी उन मे से किसी से भी बुद्ध के धर्म कि बराबरी नहीं हो सकती, इस सत्य वचन से मेरा कल्याण हो ॥

यह जो आर्य अष्टांगीक मार्ग हैं वह निर्वाण प्राप्ती का सीधा मार्ग हैं, जो सर्वश्रेष्ठ तथा शांतीदायक सद्धर्म हैं मैं उस धर्म को वंदन करता हूँ ॥



संघ वंदना

भगवान का श्रावक संघ सन्मार्ग पर चल रहा हैं, भगवान का श्रावक संघ सीधे मार्ग पर चल रहा हैं, भगवान का श्रावक संघ ज्ञान के मार्ग पर चल रहा हैं, भगवान का श्रावक संघ उत्तम मार्ग पर चल रहा हैं ॥

भगवान का श्रावक संघ ऐसे नर रत्नों का हैं जिसने चार जोडीया और आठ सप्तपदों कि प्राप्ती की हैं, यह संघ निमंत्रण देणे योग्य, स्वागत करने योग्य, दक्षिणा देणे योग्य तथा विश्व का सर्वश्रेष्ठ पुण्यक्षेत्र हैं ॥

ऐसा यह संघ नमस्कार करणे योग्य हैं, मै जीवनभर इस संघ को शरण जाता हूँ ॥

भुतकाल के बुद्धों के द्वारा स्थापित श्रावक संघ, भविष्यकाल के बुद्धों के द्वारा स्थापित श्रावक संघ होंगे, तथा वर्तमान के बुद्ध के द्वारा स्थापित श्रावक संघ हैं उन सभी उन सभी को मै वंदन करता हूँ ॥

मुझे किसी और का आधार नहीं, केवल बुद्ध का श्रावक संघ ही मेरा एकमेव आधार हैं, इस सत्य वचन से मेरा कल्याण हो ॥

तीनों प्रकार से श्रेष्ठ, ऐसे भगवान के श्रावक संघ को मैं प्रणाम करता हूँ, संघ के संबंध मे मुझ से कोई अपराध हुआ हो तो संघ मुझें क्षमा करें ॥

इस लोक में जो अनेक प्रकार के रत्न हैं, उन मे से किसी से भी बुद्ध के श्रावक संघ की बराबरी नहीं हो सकती, इस सत्य वचन से मेरा कल्याण हो ॥

संघ विशुद्ध, दक्षिणा देणे योग्य, अनेक प्रकार से गुणों से युक्त संघ को मैं प्रणाम करता हूँ ॥



त्रिरत्न वंदना...



अनंत गुणों के सागर भगवान बुद्ध को मैं नमस्कार करता हूँ, मित्रत्व कि भावना से सभी प्राणी सुखी हो, यह शरीर तो दुर्गंधी का घर हैं, सभी प्राणी विनाश कि ओर प्रस्थान कर रहें हैं, मैं भी मृत्युधर्मी हूँ ॥

भगवान ने उपदेश किये हुए धर्म को मैं नमस्कार करता हूँ, मित्रत्व कि भावना से सभी प्राणी सुखी हो, मित्रत्व कि भावना से सभी प्राणी सुखी हो, यह शरीर तो दुर्गंधी का घर हैं, सभी प्राणी विनाश कि ओर प्रस्थान कर रहें हैं, मैं भी मृत्युधर्मी हूँ ॥

मुनीराज भगवान बुद्ध के श्रावक संघ को मैं नमस्कार करता हूँ, मित्रत्व कि भावना से सभी प्राणी सुखी हो, यह शरीर तो दुर्गंधी का घर हैं, सभी प्राणी विनाश कि ओर प्रस्थान कर रहें हैं, मैं भी मृत्युधर्मी हूँ ॥



संकल्प


इस धर्माचरण से मैं बुद्ध, धर्म, संघ कि पुजा करता हूँ ॥

इस धर्माचरण से मुझें जन्म, जरा तथा मृत्यु से मुक्ती मिलेगी ॥

इस पुण्याचरण से निर्वाण कि प्राप्ती तक मुर्ख से संगत ना हो, ज्ञानीयों की संगति हो..॥

फसल की बढत के लिए समय पर वर्षा हो, संसार के सभी जीवों कि वृद्धी हो, राजा (=सरकार) धार्मिक हो ॥




सुत्तपाठ




आव्हान सुत्त

हे चक्रवाल मी वास करणे वाले देवों आप यहा आयें और सम्यक संबुद्ध अर्हंत भगवान के आर्य शिक्षा को ग्रहण करें, जो संपूर्ण दुःख से मुक्ती और निर्वाण कि और लेकर जाने वाली हैं

हे आर्य श्रावक....! सद्धर्म का श्रवण करणे का समय हो गया हैं
दुसरी बार, हे आर्य श्रावक....! सद्धर्म का श्रवण करणे का समय हो गया हैं
तिसरी बार, हे आर्य श्रावक....! सद्धर्म का श्रवण करणे का समय हो गया हैं

उन अर्हंत सम्यक संबुद्ध भगवान को नमस्कार हैं
दुसरी बार, उन अर्हंत सम्यक संबुद्ध भगवान को नमस्कार हैं
तिसरी बार, उन अर्हंत सम्यक संबुद्ध भगवान को नमस्कार हैं

इह लोक तथा परलोक में, आकाश में तथा भूमिपर रहनें वाले, प्रकृती में रहने वाले देवता, सदाचार से युक्त देवगण, श्रेष्ठ सुमेरू पर्वत पर जो कुछ सुवर्ण से निर्माण किये गये हुए देवलोक हैं वे सभी भगवान बुद्ध के सद्धर्म का श्रवण करणे के लिये पधारे, जो (सद्धर्म) शांती और सुख का स्त्रोत है

चक्रमंडल मे रहने वाले सभी देवता, यक्ष तथा ब्रह्मा गण इस पुण्य का अनुमोदन करके बुद्ध के शासन मे लाग जायें, और सभी प्रकार के विकारों से मुक्ती पाकर रक्षण के कार्य हेतू सज्ज हो, विश्व कि और धर्म कि वृद्धी हो,सभी देवता विश्व और धर्म का रक्षण करे

सभी अपने अपने परिवार के साथ शारीरिक और मानसिक सुख का लाभ लिये दुःख से मुक्त हो, राजभय, चोरभय, मनुष्यभय, अमनुष्यभ, अग्नी, जल, पाप, बंदर, हाथी, घोडा, बैल, कुत्ता, साप, बिच्छू, आदी से सभी प्रकार के भय, रोग और उपद्रओं से सभी देवता मेरा रक्षण करे




महामंगल सुत्त


एक समय भगवान श्रावस्ती नगर के जेतवन उद्यान मी अनाथापिंडीक के द्वारा बनवाये संघाराम मे विहार कर राहे थे उस समय एक देवता अपने तेज से सारा जेतवन प्रकाशीत करते हुए भगवान के पास आ कर भगवान को वंदन किया और भगवान के सामने एक गाथा कहीं :

कल्याण कि कामना करते हुए कितने हि देव और मनुष्य मंगल धर्मो के संबंध में चिंता कर रहे है ! हे तथागत ! आप हि कृपा कर बतैये कि वास्तविक श्रेष्ठ मंगल क्या है ..?
भगवान ने कहा -

अज्ञानियों से दूर रहना, ज्ञानियोंकी सांगति करना और जो पूजनीय है उनकी पूजा करना यह श्रेष्ठ मंगल है ॥

उपयुक्त देश मी निवास करना, पूर्व कार्मो का संचित पुण्य होना और स्वयं को सम्यक रूपेण समाहित रखना यह श्रेष्ठ मंगल है ॥

अनेक विद्याओं और शिल्प कलाओं मी निपुण होना, विनय स्वभाव मी सुशिक्षित होना और वार्तालाप मी सुभाषी होना यह श्रेष्ठ मंगल है ॥

माता पिता कि सेवा करना, परिवार का पालन पोषण करना और निष्पाप व्यवसाय करना यह श्रेष्ठ मंगल है ॥

दान देणा, धर्माचरण करना, सजातीय संबंधियों कि सहायता कर संग्रह करना और वर्जित दुष्कर्म न करना यह श्रेष्ठ मंगल है ॥

तन मन धन से पापों का त्याग करना, मदिरा सेवन से दूर रहना और कुशल धर्मो के पालन मी सदा सचेत रहना यह श्रेष्ठ मंगल है ॥

पूजनीय व्याक्तियो को गौरव देना, सदा विनीत रहना, संतुष्ट राहना, कृतज्ञ रहना और उचित समय पर धर्म श्रवण करना यह श्रेष्ठ मंगल है ॥

सहनशील होना, अज्ञाकारी होना, श्रमणो का दर्शन करना और उचित समय पार धर्म चर्चा कारना यह श्रेष्ठ मंगल है ॥

तप साधना करना, ब्रह्मचर्य पालन करना, चार आर्य सत्यो का दर्शन कारण और निर्वाण का सक्षात्कार करना यह श्रेष्ठ मंगल है ॥

जिसका चित्त लोक धर्मो से विचलित नही होता, निःशोक, निर्मल और निर्भय रहना यह श्रेष्ठ मंगल है ॥

जो उपर्युक्त (३८) मंगल धर्मो का पालन करते हुए सर्वत्र जय लाभी होते है, सर्वत्र कल्याणलाभी होते है, उन मंगल मार्गियों के ये हि श्रेष्ठ मंगल है ॥




करणीय मेत्त सुत्त

शांति पद के प्राप्ति कि कामना करने वाले, कल्याण साधना प्रवीण प्राप्त मनुष्य को इमानदार बनना चाहिए ॥

वह संतोष प्राप्त सरल जीवन चलाने वाला सज्जन और अनासक्त होना चाहिए ॥

विद्वान लोक निंदा ना कर पाये, ऐसे छोटा से छोटा कार्य न करें, सभी प्राणी सुखी हो, सबका कल्याण हो, सभी को सिद्धी प्राप्त हो (ऐसी मैत्रीभावना करें ) ॥

सभी प्रकार के उत्पन्न हुये हूए तथा उत्पन्न न हुये हूए प्राणी सुखी हो... ॥

कोई किसी कि वंचना न करें, कोई किसी का अपमान ना करें, कोई किसी को दुःख देने कि कामना ना करें ॥

जीस तरह माता अपने पुत्र के रक्षण हेतु, स्वयं प्राण को न्योछावर करती हैं, उसी तरह सभी जीवों के प्रती अपने चित्त मे निस्सीम प्रेम कि भावना जागृत करें ॥

मन कि बाधा, वैरभाव तथा शतृत्व को त्याग कर सारे विश्व के प्रती मन मे निस्सीम प्रेम कि भावना करें ॥

खडे रहते, बैठे रहते तथा सोये रहते (जिस समय तक) जागृत होगे, तब तक ऐसी ही स्मृती रखें, इसी को ब्रह्मविहार कहते हैं ॥

ऐसा मनुष्य कभी मिथ्या दृष्टी मे न पडते हूए, शीलवान होकर, विशुद्ध दर्शन से युक्त होकर, काम - तृष्णा का नाश कर के गर्भाशय से मुक्त होते हैं ॥



मंङल गाथा



महामंङल गाथा


महाकारुणीक भगवान बुद्ध ने समस्त विश्व के कल्याण हेतु दस पारमिता पुर्ण कर श्रेष्ठ संबोधी कि प्राप्ती कि हैं, इस सत्य वचन से मेरा कल्याण हो ॥

शाक्य वंश को हर्षीत करने वाले भगवान बुद्ध ने बोधीवृक्ष के नीचे बैठकर मार और उसकी सेना का पराभव किया, उसी तरह से मेरा कल्याण हो ॥

राग, द्वेष, मोह, आदी विकारों पर देव तथा मनुष्य के कल्याण के हेतु बुद्धरत्न औषध का सत्कारपुर्वक ग्रहण करें, इस तेजोमय बुद्धरत्न के प्रभाव से मेरा कल्याण हो, सभी प्रकार के दुःख तथा उपद्रव का नाश हो ॥
चिंता का नाश करने वाले श्रेष्ठ धर्मरत्न यह औषध हैं, इसके सत्कारपुर्वक सेवन से सभी भय शांत हो ॥
निमंत्रण देणे के पात्र ऐसे संघरत्न श्रेष्ठ औषध हैं, ऐसे तेजोमय संघरत्न के सत्कारपुर्वक सेवन से सभी उपद्रव तथा दुःख का नाश हो ॥


विश्व मे जो कुछ मुल्यवान रत्नों मे जिनकी पहचान हैं, उन सब मे बुद्ध कि बराबरी करणे वाला एक भी रत्न नहीं, इस सत्य वचन से मेरा कल्याण हो ॥
विश्व मे जो कुछ मुल्यवान रत्नों मे जिनकी पहचान हैं, उन सब मे धर्म कि बराबरी करणे वाला एक भी रत्न नहीं, इस सत्य वचन से मेरा कल्याण हो ॥
विश्व मे जो कुछ मुल्यवान रत्नों मे जिनकी पहचान हैं, उन सब मे संघ कि बराबरी करणे वाला एक भी रत्न नहीं, इस सत्य वचन से मेरा कल्याण हो ॥


बुद्ध के सीवा मेरे लिए कोई और दुसरा शरण नहीं, इस सत्य वचन से मेरा कल्याण हो ॥
धर्म के सीवा मेरे लिए कोई और दुसरा शरण नहीं, इस सत्य वचन से मेरा कल्याण हो ॥
संघ के सीवा मेरे लिए कोई और दुसरा शरण नहीं, इस सत्य वचन से मेरा कल्याण हो ॥


मेरे सभी प्रकार भय, शत्रुता, रोग का नाश हो, मुझें सुखी तथा दिर्घ आयु प्राप्त हो ॥


बुद्ध के प्रभाव से मेरा मंगल हो, सभी देवता रक्षण करें और मेरा कल्याण हो ॥
धर्म के प्रभाव से मेरा मंगल हो, सभी देवता रक्षण करें और मेरा कल्याण हो ॥
संघ के प्रभाव से मेरा मंगल हो, सभी देवता रक्षण करें और मेरा कल्याण हो ॥


अप्रिय शब्द, पापग्रह, बुरे सपने उन सभी का बुद्ध, धर्म और संघ के प्रभाव से नाश हो ॥



जयमंङगल अठ्ठगाथा


जिन मुनींद्र ने सुदृढ हत्यार धरण करके, सहस्रबाहु, गिरीमेखल नामक हाथी पे सवार होकर अपनी भयानक सेना के साथ आये हुए मार को अपने दान आदी धर्म बल से विजय प्राप्त की उन भगवान बुद्ध के प्रभाव से मेरा मंगल हो ॥

जिन मुनींद्र ने मार के अलावा समस्त रात्री भर संग्राम करने वाले घोर दुर्धर तथा निष्ठुर ह्रदय वाले आलवन नाम के यक्ष पर अपने क्षांती और संयम के बल पर विजय प्राप्त की उन भगवान बुद्ध के प्रभाव से मेरा मंगल हो ॥

जिन मुनींद्र ने दावाग्नीचक्र और बिजली के समान अत्यंत भयानक नालागीर हाथी पर अपने मैत्री के अभिषेक से विजय प्राप्त की उन भगवान बुद्ध के प्रभाव से मेरा मंगल हो ॥

जिन मुनींद्र ने हाथ मे तलवार लेकर एक योजन तक दौडने वाले अत्यंत भयानक अंगुलीमाल पर अपने ऋद्धीबल से विजय प्राप्त की उन भगवान बुद्ध के प्रभाव से मेरा मंगल हो ॥

जिन मुनींद्र ने गर्भवती कि नकल कर के (बुद्ध पर कलंक लगाने के लिए) जनता के समक्ष दुष्ट वचन करने वाली चिंचा नाम के स्त्री पर अपने शांति और सौम्यता आदी गुणों से विजय प्राप्त की उन भगवान बुद्ध के प्रभाव से मेरा मंगल हो ॥

जिन मुनींद्र ने सत्य का साथ छोडे हूए असत्यवादी, अभिमान, वाद विवाद में उत्तम अहंकार से अंधे हूये हूए सच्चक नाम के परिव्राजक पर अपने प्रज्ञा के प्रदीप द्वारा विजय प्राप्त की उन भगवान बुद्ध के प्रभाव से मेरा मंगल हो ॥

जिन मुनींद्र ने महाऋद्धीसंपन्न, नंदोपनंद नाम के भुजंग पर अपने महामोग्गलायन शिष्य के द्वारा ऋद्धी और उपदेश के बल से विजय प्राप्त की उन भगवान बुद्ध के प्रभाव से मेरा मंगल हो ॥

जिन मुनींद्र ने भयंकर मिथ्या दृष्टी वाले, विशुद्धज्योती, महारिद्धीसंपन्न बक नाम के ब्रह्मा पर विजय प्राप्त की उन भगवान बुद्ध के प्रभाव से मेरा मंगल हो ॥



धम्मपालन गाथा


कोई पाप न करना, सद्धर्म का पालन करना, अपने मन को सद्धर्म के मार्ग पर लगाना यहीं बुद्ध का शासन हैं ॥
सुचरीत धर्म का आचरण करें, दुराचरण का त्याग करें, धर्माचरण करने वालों को सभी लोक में सुख से नींद आती हैं ॥


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२ टिप्पण्या:

  1. खुप छान


    जिघच्छा परमा रोगा, संखारा परमा दुखा।
    एव ञत्वा यथाभूतं निब्बानं परम सुखं॥

    बुद्ध म्हणतात, की सर्व रोगांचे मूळ शेवटी जिघृक्षा आहे.
    ग्रहण करण्याची इच्छा, तृष्णा. सर्व दुःखाचे मूळ आहे संस्कार. हेच जाणून घेत....__



    https://bhimrath.blogspot.com/2018/08/blog-post_14.html?m=1



    YouthTesHindi.blogspot.com

    sagardhande.blogspot.com

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  2. खुपच छान आहे.मराठी मध्य आहे का?.

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